सरकार की राह ताकते-ताकते थक गए ग्रामीण ! खुद ही बना डाली 6 KM लंबी सड़क
बारिश में रास्ता पूरी तरह से कीचड़ और गड्ढों से भर जाती थी, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. कई सालों से स्थानीय प्रशासन और सरकार से गुहार लगाने के बावजूद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो ग्रामीणों ने खुद ही पहल करने का निर्णय लिया

Naxatra News Hindi
Ranchi Desk:चुनाव के समय नेता अक्सर विकास के बड़े-बड़े वादे करते हैं लेकिन वादों के बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. ऐसा ही एक मामला झारखंड के चतरा जिले से सामने आया है जहां जंगलों के बीच बसने वाले ग्रामीणों ने सरकारी मदद नहीं मिलने और अपने जनप्रतिनिधि द्वारा चुनाव के वक्त किए वादे पूरे नहीं होने पर खुद ही वह कर दिखाय जो काबिले तारीफ है. ग्रामीणों ने उन्हें सच्चाई का आईना दिखाने का प्रयास और लोगों के बीच एक प्रेरणादायक मिसाल पेश करने की कोशिश की है. और अपने गांव की किस्मत बदलने का फैसला भी कर लिया है.
हाल के दिनों ग्रामीणों ने बनाया था लकड़ी का पुल
दरअसल, आपको बता दें, यह पूरा मामला चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड स्थित बरहे गांव का है जहां ग्रामीणों ने सरकार की तरफ से कोई पहल और मदद न मिलने पर खुद ही आपसी सहयोग से अपने क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य कर डाला. यह गांव पहले अपनी बदहाली के लिए अक्सर खबरों में आता रहा है. हाल ही दिनों ग्रामीणों ने नदी पर लकड़ी का पुल निर्माण कर गांव को बाहरी दुनिया से संपर्क जोड़ा था. और अब एक बार फिर अपने कुशलता और एकजुटता का परिचय देते हुए ग्रामीणों ने गांव की बदहाल सड़क को भी दुरुस्त कर दिया. क्योंकि बरहे गांव तक पहुंचने वाली सड़क की हालत बेहद खराब थी.
चंदा इकट्ठा कर मंगवाई JCB मशीन
बारिश के मौसम में यह पूरी तरह से कीचड़ और गड्ढों से भर जाती थी, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. कई सालों से स्थानीय प्रशासन और सरकार से गुहार लगाने के बावजूद जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो ग्रामीणों ने खुद ही पहल करने का निर्णय लिया. ग्रामीणों ने मिलकर चंदा इकट्ठा किया और उस पैसे से एक जेसीबी मशीन मंगवाई. इसके बाद, सभी ग्रामीण, युवा, बुजुर्ग, महिलाएं अपने हाथों में फावड़ा, टोकरी और अन्य औजार लेकर सड़क बनाने में जुट गए.
जंगलों के बीच होते हुए गांव तक बना डाली 6KM लंबी सड़क
उनकी मेहनत और लगन का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन्होंने लगभग छः किलोमीटर लंबी सड़क को चलने लायक बना दिया. इस सड़क के बनने से न सिर्फ गांव वालों को आने-जाने में सुविधा हुई है, बल्कि उनके हौसले भी बुलंद हुए हैं. इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर ग्रामीण कब तक अपनी बुनियादी सुविधाओं के लिए खुद ही जिम्मा उठाएंगे? क्या प्रशासनिक व्यवस्था इतनी लाचार है कि उसे गांवों तक सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने के लिए भी ग्रामीणों के जज्बे का इंतजार करना पड़ेगा? बरहे गांव की यह कहानी सिर्फ एक सड़क के निर्माण की नहीं है, बल्कि यह उस जज्बे की कहानी है जो सरकारी तंत्र की विफलता को उजागर करती है.
ग्रामीणों ने पेश की प्रशासनिक लापरवाही का सबसे बड़ा प्रमाण
चतरा जिले के बरहे गांव की यह कहानी दिखाती है कि अगर लोग ठान लें कि खुद ही अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं और अपने दम पर विकास की नई राह बना सकते हैं. हालांकि ग्रामीणों के इस कार्य ने यह भी साबित कर दिया है कि झारखंड के सुदूर गांवों में आज भी सरकारी स्वास्थ्य और शिक्षा की तरह, सड़कों की हालत भी बद से बदतर है. जब तक सरकार और प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं देंगे, तब तक बरहे जैसे कई गांवों की कहानी बनती रहेगी, जो एक तरफ जज्बे की मिसाल होगी, तो दूसरी तरफ प्रशासनिक लापरवाही का सबसे बड़ा प्रमाण.
मामले में चतरा सांसद कालीचरण सिंह ने क्या कहा ?
चतरा सांसद कालीचरण सिंह ने कहा कि ऐसा मामला संज्ञान में आया है. कि प्रतापपुर प्रखंड स्थित बरहे गांव के लोगों को आने जाने के लिए सड़क की समस्याएं है जानकारी है कि क्षेत्रीय विधायक अपने कार्य क्षेत्र से करवा रहे हैं व्यक्तिगत रुप से और डिप्टी कमीशन को संज्ञान में डालकर उस कार्य को करवाने का काम करेंगे. भविष्य में लोगों को कोई दिक्कतें न हो या ऐसे कई सुदूर इलाके हैं जहां लोगों के जनहित परेशानियों को लेकर जानकारियां जुटाने का कार्य और ग्रामीण इलाकों में विकास के कार्यों पर प्रयासरत हूं.









