झारखंड में 20 सितंबर को कुर्मी समुदाय का रेल रोको आंदोलन ! राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज
सत्ता पक्ष का कहना है कि यह राज्य सरकार का विषय नहीं है इस पर केंद्र को फैसला लेना है जबकि विपक्ष का कहना है कि राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती है.

Navin Sharma / Naxatra News Hindi
Ranchi Desk:झारखंड में आदिवासी बनने के लिए कुर्मी समुदाय का संघर्ष जारी है झारखंड की राजनीतिक गलियारों में इन दिनों कुर्मी आंदोलन को लेकर सियासी हलचल भी तेज हो गई है. पिछले दिनों कुर्मी संगठन ने दिल्ली कें जंतर-मंतर में भी आंदोलन किया था. दरअसल, आपको बता दें, कुर्मी समुदाय द्वारा खुद को आदिवासी समुदाय में शामिल करने के लिए लगातार मांग की जा रही है. अपनी इन मांगों के लेकर अब कुर्मियों ने आगामी 20 सितंबर 2025 (शनिवार) को राज्यभर में कई जगहों पर रेल रोको अभियान चलाने का ऐलान कर दिया है.
यह राज्य सरकार का विषय नहीं- JMM
इन सबके बीच राज्य में राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है. सत्ता पक्ष का कहना है कि यह राज्य सरकार का विषय नहीं है इस पर केंद्र को फैसला लेना है जबकि विपक्ष का कहना है कि राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती है. केंद्र के फैसले से पहले राज्य को ही यह तय करना होगा कि वाकई में सरकार उन्हें एसटी का दर्जा देना चाहती है. वहीं कुर्मी समाज के इस आंदोलन को लेकर JMM (झारखंड मुक्ति मोर्चा) के प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा है कि निश्चित तौर पर यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इस पर तो केंद्र सरकार को विचार करना है यह विषय राज्य सरकार का नहीं है.
'क्या वाकई में ST का दर्जा देना चाहती है राज्य सरकार या...'
इधर, इस विषय से राज्य सरकार में शामिल JMM अपना पलड़ा झाड़ रही है. तो वहीं प्रदेश बीजेपी मीडिया प्रभारी शिवपूजन पाठक ने कहा है कि अपने जिम्मेदारी से कोई भी नहीं भाग सकता है. निश्चित रुप से यह एक संवेदनशील मुद्दा है इसपर केंद्र सरकार अपना फैसला करेगी लेकिन इससे पहले राज्य सरकार को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी. राज्य सरकार को यह तय करना होगा कि क्या कुर्मियों को वह आदिवासी समुदाय में शामिल करना चाहते हैं या नहीं...
हालांकि कुर्मी समुदाय द्वारा आदिवासी समुदाय में शामिल कराने की मांग अब और तूल पकड़ती हुई नजर आने वाली है. कुर्मियों ने 20 सितंबर 2025 को राज्य के अलग-अलग जगहों पर रेल रोको आंदोलन करने की घोषणा कर दी लेकिन इन सबके बीच यह देखना बहुत महत्वपूर्ण होगा कि क्या उनका यह आंदोलन उन्हें आदिवासी का दर्जा दिला पाएगा या यह केवल एक राजनीतिक मुद्दा ही बनाकर रह जाएगा. जैसा पहले से लगातार बनता आया है.









