JPSC ने यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे कुछ असिस्टेंट प्रोफेसर को दिया प्रमोशन, जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के शिक्षक नाराज !
विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे कुछ असिस्टेंट प्रोफेसरों को प्रमोशन दिया है. प्रमोशन पाने वाले शिक्षक खुश हैं, लेकिन इसी विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के कई प्रोफेसर में भारी नाराजगी है.

Jharkhand (Ranchi): जेपीएससी ने एक लंबे इंतजार के बाद विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे कुछ असिस्टेंट प्रोफेसरों को प्रमोशन दिया है. प्रमोशन पाने वाले शिक्षक खुश हैं, लेकिन इसी विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के कई प्रोफेसर में भारी नाराजगी है. आरोप है कि 36 वर्षों की सेवा के बावजूद अब तक इन्हें एक भी प्रमोशन नहीं मिला. मामला रांची विश्वविद्यालय के उस विभाग से जुड़ा है, जिसे झारखंड की भाषा और अस्मिता की रीढ़ माना जाता है... पढ़ें, खास रिपोर्ट...
बिना प्रमोशन के शिक्षकों ने 36 साल तक दी सेवा !
आपको बता दें, झारखंड एक जनजातीय एवं बहुभाषी राज्य है. इसी पहचान को सहेजने के लिए वर्ष 1980 में सबसे पहले रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना की गई. यहां 9 भाषाओं में 51 शिक्षक पढ़ाते थे. दावा है कि इन शिक्षकों ने 36 साल तक बिना प्रमोशन के सेवा दी. इस दौरान कई शिक्षक रिटायर हो गए, कई की मृत्यु हो गई, लेकिन व्यवस्था नहीं बदली. 51 में से करीब 12 शिक्षकों के नाम प्रमोशन के लिए भेजे गए, मगर नतीजा सिर्फ निराशा रहा.
'सरकार और जेपीएससी से मांग, कि हमें प्रमोशन दिया जाए'
रांची यूनिवर्सिटी में खोरठा विभाग के विभगाध्यक्ष डॉ. कुमारी शशि ने कहा कि प्रमोशन को लेकर मामला काफी पुराना हो गया है प्रत्येक 10 वर्ष में एक प्रमोशन दिया जाता है लेकिन राज्य सरकार या जेपीएससी द्वारा हमारा एक बार भी प्रमोशन नहीं किया गया है. जिस पोस्ट पर योगदान दिए उसी पर अभी भी कार्यरत है. जेपीएससी ने 2006 से हमें परमानेंट किया है. लेकिन हमें प्रमोशन न देकर सरकार ने 2008 से नियुक्त शिक्षकों को प्रमोशन दिया. हमारी सरकार और जेपीएससी से मांग है कि हमें प्रमोशन दिया जाए.
JPSC और सरकार ने विभाग को लगातार किया नजरअंदाज- उमेश नंद किशोर
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के कई शिक्षकों का कहना है कि यह मामला महज़ फाइलों में अटकी प्रशासनिक लापरवाही का नहीं, बल्कि झारखंड की जनजातीय भाषाओं के साथ हो रही सुनियोजित उपेक्षा का है. रांची यूनिवर्सिटी में नागपुरी विभाग के अध्यक्ष उमेश नंद तिवारी इसे शिक्षकों के साथ ही नहीं भाषा साहित्य और संस्कृति के साथ किया जा रहा अन्याय बताते हैं उनका आरोप है कि माननीय उच्च न्यायालय के स्पष्ट और बार-बार दिए गए आदेशों के बावजूद जेपीएससी और राज्य सरकार ने इस विभाग को लगातार नजरअंदाज किया. परिणाम यह कि दशकों तक पढ़ाने वाले शिक्षक आज भी उसी पद पर जमे हुए हैं, जबकि उनके समकक्ष अन्य विषयों के शिक्षक कई-कई प्रोन्नतियां पा चुके हैं.
'लड़ाई पद और प्रमोशन की नहीं, बल्कि सम्मान और न्याय की'
वहीं, RU में कुरमाली विभाग की अध्यक्ष गीता कुमारी सिंह का कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ पद और प्रमोशन की नहीं, बल्कि शिक्षकों के सम्मान और न्याय की है. शिक्षकों का साफ कहना है कि अगर अब भी इस पर ठोस फैसला नहीं लिया गया, तो यह केवल कुछ लोगों के करियर का नुकसान नहीं होगा, बल्कि झारखंडी भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक पहचान के साथ एक गंभीर अन्याय माना जाएगा.
सरकार के अगले कदम पर टिकीं सबकी निगाहें !
हालांकि मामलेम में अब जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के शिक्षक कुलपति, राज्यपाल सह कुलाधिपति और झारखंड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात कर अपनी मांगों को औपचारिक रूप से रखने की तैयारी में हैं. शिक्षकों का साफ कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ प्रमोशन की नहीं, बल्कि झारखंड की भाषा, संस्कृति और अस्मिता की लड़ाई है. सवाल यह है कि क्या झारखंड की पहचान मानी जाने वाली भाषाओं के शिक्षक यूं ही न्याय से वंचित रहेंगे, या फिर सरकार और जेपीएससी 36 वर्षों की सेवा का सम्मान करते हुए कम से कम एक प्रमोशन देने का फैसला लेंगी. फिलहाल, पूरे राज्य की नजर सरकार के अगले कदम पर टिकीं हुई हैं.
रिपोर्ट- यशवंत कुमार









