“1.5 °C लक्ष्य चूके तो मानवीय संकट” : COP30 में Antonio Guterres की चेतावनी
विश्व-नेताओं ने ब्राज़ील के बेलेम में शुरू हुए COP30 सम्मेलन में चेताया है कि धरती का तापमान 1.5 °C से अधिक बढ़ने का खतरा अब वास्तविक हो गया है. Antonio Guterres ने इस लक्ष्य को “नैतिक विफलता” करार दिया और बढ़ती आपदाओं से लड़ने वाला नया मानव-संकट खड़ा होने की बात कही.

NAXATRA GLOBAL DESK
ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित ग्लोबल जलवायु सम्मेलन COP30 में आज तेजी से बढ़ रहे जलवायु संकट को लेकर चिंता गहरी हो गई है. Antonio Guterres ने कहा कि यदि पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 °C से अधिक बढ़ जाता है तो यह “मानवता के लिए एक नैतिक विफलता और घातक लापरवाही” होगी.
Guterres ने बताया कि वर्तमान नीतियाँ हमें लगभग 2.3 °C तक तापमान बढ़ाने की ओर ले जा रही हैं, जो कि पेरिस समझौते द्वारा तय 1.5 °C लक्ष्य से काफी ऊपर है. उन्होंने फॉसिल ईंधन कंपनियों और राजनीतिक‐वित्तीय हितों को कटघरे में खड़ा किया, जिनका कहना है कि उन्होंने पर्यावरणीय विनाश से लाभ उठाया है जबकि वैश्विक सहयोग कमजोर हुआ है.
सम्मेलन में यह भी सामने आया कि फिलीपींस और वियतनाम में आने वाले तूफान Typhoon Kalmaegi ने सैकड़ों लोगों की जानें ले ली हैं. इस तूफान को महासागरीय तापमान वृद्धि से जोड़ा जा रहा है. इस पृष्ठभूमि में COP30 को एक “कार्रवाई सम्मेलन” कहा गया है - जहाँ नए वादों की बजाय ठोस क्रियान्वयन-चरण पर ध्यान दिया जा रहा है.
ब्राज़ील ने सम्मेलन के दौरान दो महत्वपूर्ण पहलें पेश कीं: एक ‘Tropical Forest Forever Facility’ जिसका लक्ष्य अगले सालों में 125 अरब डॉलर जुटाना है, और दूसरी ऐसी वैश्विक संधि जो 2030 तक 1.6 करोड़ हेक्टेयर से अधिक वन और पारंपरिक समुदायों की जमीन की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी.
विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि अक्षय ऊर्जा को लेकर निवेश बढ़ा है, लेकिन उत्सर्जन अभी भी 1995 के बाद 34 % तक बढ़ चुका है, और इसे कम करने के लिए अभी गति काफी कम है. Guterres ने कहा कि यदि सही समय पर कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले दशकों में आपदाओं, प्रवास-संकट और जैव-विविधता विनाश की स्थिति ‘सामान्य’ हो सकती है.
भारत सहित दुनिया के कई विकासशील देशों के लिए यह चुनौती विशेष रूप से कठिन है क्योंकि वे विकास और जलवायु दोनों दबावों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस सम्मेलन में यह उम्मीद जताई गई है कि वित्त-सहायता, तकनीकी हस्तांतरण और लॉन्ग-टर्म योजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी - परन्तु समय बहुत कम है.









