मासूम बच्चों के रक्त ट्रांसफ्यूजन में हुई भारी लापरवाही, 6 बच्चों में पाया गया HIV संक्रमण
मध्य प्रदेश के सतना में 6 बच्चों के एचआईवी संक्रमित होने की खबर ने लोगों को गंभीर चिंता में डाल दिया है. जहां अस्पताल द्वारा की गई लापरवाही के कारण मासूम बच्चों में HIV पॉजिटिव जैसी समस्या का सृजन हो गया, वहीं अस्पताल प्रशासन इसका ठिकरा दूसरे ब्लड बैंक के ऊपर डालती नजर आ रही है.

MP (SATNA): थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को नियमित रूप से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है. इसी प्रक्रिया के तहत इन बच्चों को विभिन्न अवसरों पर रक्त दिया गया था. बाद में जब उनकी नियमित जांच की गई, तो वे एचआईवी पॉजिटिव पाए गए. परिजनों का आरोप है कि संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने के कारण बच्चों को यह संक्रमण हुआ. रक्त चढ़ाने से पहले एचआईवी सहित अन्य संक्रमणों की जांच अनिवार्य होती है. ऐसे में एक नहीं बल्कि शुरुआत में जानकारी मिली कि 4 बच्चों में HIV संक्रमण पाया गया, जिसका संख्या अब बढ़कर 6 हो गई है. ऐसी लापरवाही के कारण बच्चों का एचआईवी पॉजिटिव होना ब्लड बैंक की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है. आशंका जताई जा रही है कि संबंधित अवधि में उपयोग किए गए कुछ रक्त यूनिट्स की जांच या तो ठीक से नहीं हुई या फिर जांच किट की संवेदनशीलता पर्याप्त नहीं थी.
जांच में सामने आयी बड़ी समस्या - गलत मोबाइल नंबर, गलत पता
सूत्रों के अनुसार, जिला अस्पताल के अलावा बिरला अस्पताल, रीवा और प्रदेश के अन्य स्थानों से भी बच्चों के लिए रक्त लिया गया था, जिससे यह स्पष्ट करना और कठिन हो गया है कि संक्रमण किस यूनिट से फैला. मामला सामने आने के बाद तय प्रोटोकॉल के तहत रक्तदाताओं की श्रृंखला (डोनर ट्रेसिंग) की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन अब तक सभी डोनरों को चिन्हित नहीं किया जा सका है. जांच में सबसे बड़ी समस्या गलत मोबाइल नंबर और अपूर्ण पता सामने आई है. फिलहाल लगभग 50 प्रतिशत डोनरों की जांच की जा चुकी है, लेकिन किसी से भी संक्रमण का सीधा संबंध स्थापित नहीं हो पाया है.
विंडो पीरियड - 20 से 90 दिन: डॉ. देवेंद्र पटेल
ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. देवेंद्र पटेल ने बताया कि बच्चों की नियमित जांच के दौरान यह सामने आया कि वे पहले एचआईवी निगेटिव थे और बाद में पॉजिटिव हुए. उन्होंने बताया कि पूर्व में रैपिड टेस्ट किट से जांच होती थी, जबकि अब एलाइजा विधि से जांच की जाती है, जिससे एंटीबॉडी का बेहतर तरीके से पता चलता है. हालांकि एलाइजा टेस्ट में भी 20 से 90 दिन की विंडो पीरियड की सीमा होती है, जिसके कारण शुरुआती संक्रमण पकड़ में नहीं आ पाता. डॉ. पटेल के अनुसार बच्चों के माता-पिता की जांच की गई है और वे एचआईवी निगेटिव पाए गए हैं. फिलहाल डोनरों की पहचान और जांच की प्रक्रिया जारी है. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि HIV पोजिटिव बच्चों के माता-पिता की भी जांच की गई है, जिसमें उनका HIV नेगेटिव डिटेक्ट किया गया. बताया कि जिन्हें कम ट्रांसफ्यूजन होती है उन्हें संक्रमण की संभावना कम होती है, ट्रांसफ्यूजन बार-बार होने से HIV संक्रमित होने की संभावना अधिक रहती है.
एक बच्चे के माता-पिता मिले संक्रमित: CMHO मनोज शुक्ला
सतना के CMHO मनोज शुक्ला ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि HIV पीड़ित बच्चों के माता-पिता में जब संक्रमण की जांच की गई, तो एक बच्चे के माता-पिता में भी संक्रमण पाया गया. मामला सामने आने के बाद, पिछले कुछ महीनों में जिला अस्पताल में ब्लड डोनेट करने वालों की खोज खबर शुरू हो गई है. अगर HIV पॉजिटिव ब्लड डोनर की जल्दी खोज खबर नहीं की गई, तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में इन डोनर के ब्लड से औरों को भी HIV संक्रमण फैल सकता है.








