सिर्फ जाहिल ही नहीं पढ़े लिखे भी होते हैं आतंकवादी, हाईली क्वालिफाइड आतंकियों को जानें...
दिल्ली ब्लास्ट में डॉक्टर उमर, डॉ मुजम्मिल, डॉ आदिल और डॉ शाहीन की संलिप्तता के बाद ये चर्चा आम है कि आखिर पढ़ा लिखा डॉक्टर आतंकवादी कैसे बन सकता है और लोगों की जान लेने के लिए केमिकल कैसे बना सकता है ?

NAXATRA NEWS : दिल्ली में आतंकी ब्लास्ट के बाद पूरे देश में हाई अलर्ट है. इस हादसे में 12 लोगों की मौत हो गई तो वहीं कई लोग घायल हैं,जिनका अस्पताल में जारी है. दिल्ली ब्लास्ट में डॉक्टर उमर, डॉ मुजम्मिल, डॉ आदिल और डॉ शाहीन की संलिप्तता के बाद ये चर्चा आम है कि आखिर पढ़ा लिखा डॉक्टर आतंकवादी कैसे बन सकता है और लोगों की जान लेने के लिए केमिकल कैसे बना सकता है ? तो आपको बता दूं कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. देखिए आतंकियों के मास्टरमाईंड जो कि पढ़े लिखे और ऊंची डिग्रीधारी हैं.
ऊंची डिग्रियों के बावजूद बने आतंक के सरगना
याकूब मेनन : 1993 मुंबई बम कांड में दोषी पाए जाने के बाद फांसी की सजा पाने वाला याकूब चार्टर्ड अकाउंटेंट था. उसने द इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया से यह डिग्री हासिल की थी और उसका अपना फर्म भी था.
ओसामा बिन लादेन : 1998 में अमेरिका पर सबसे बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने वाले लादेन ने 1979 में सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी. उसने किंग अब्दुल्ला अजीज यूनिवर्सिटी से इकॉनोमिक्स और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की हायर एजूकेशन हासिल की थी.
अफजल गुरु: इस आतंकी ने 1991 में भारतीय संसद पर हमले को अंजाम दिया था. इसकी शुरुआती पढ़ाई जम्मू-कश्मीर से हुई थी, फिर इसने झेलम वेली मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और वहां से एमबीबीएस किया.
हाफिज सईद : पाकिस्तान में बैठकर भारत में आतंकवाद फैलाने वाले दहशतगर्दों के इस आका के पास दो-दो मास्टर्स डिग्रियां हैं. इसने यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब से पढ़ाई की है.
मो. मसूद अजहर : जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मो. मसूद अजहर ने जुलाई 2008 में अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया था. मसूद ने उर्दू औऱ अरबी में मास्टर डिग्री हासिल की है.
रियाज भटकल : इंडियन मुजाहिद्दीन की स्थापना इसी आतंकी ने की थी. 2006 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट, 2007 के हैदराबाद ब्लास्ट और 2008 के दिल्ली ब्लास्ट में इसका हाथ था. आतंकी बनने से पहले रियाज इंजीनियर था.
शिक्षा आतंकवाद से सुरक्षा की गारंटी नहीं
नीति-निर्माताओं, शिक्षा संस्थानों, समाज को यह देखना होगा कि शिक्षा किस प्रकार दी जा रही है, सिर्फ तकनीकी डिग्री नहीं बल्कि मानव-मूल्य, आलोचनात्मक सोच, सहिष्णुता का पाठ भी जरूरी है.
समाज में पहचान-संकट, विद्वेष, कट्टर समर्थन, पारिवारिक एवं सामाजिक दबाव आदि को कम करना होगा क्योंकि पढ़ा-लिखा होना जब अकेला कारक हो जाए तो उसे गलत दिशा मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
सुरक्षा-एजेंसियों और नीतियों को यह ध्यान देना चाहिए कि “उच्चशिक्षित समूह” भी आतंकवादी नेटवर्क में शामिल हो सकते हैं, इसलिए सिर्फ गरीबी नियंत्रण पर ध्यान ना जाए.
आखिर “डॉक्टर क्यों आतंकवादी बने?”, “उच्चशिक्षित क्यों बम-निर्माता बन गए?”, तो हमें केवल शिक्षा का अभाव नहीं देखना चाहिए,कारण अधिक गहराई में हैं. जैसे विचारधारा, सामाजिक परिवेश, मानसिक प्रक्रिया, तकनीकी-खूबियां, नेटवर्क और संपर्क.
पढ़ाई-लिखाई एक ढाल बन सकती है, लेकिन जब वह ढाल गलत विचारों से मिल जाती है, तो वह हथियार बन सकती है. इसके लिए हमें शिक्षा-प्रचार के साथ मानवता-प्रचार भी करना होगा, तभी हम इस तरह के “डिग्रीधारी आतंकवाद” के चक्र को तोड़ सकेंगे.









