"पंख से कुछ नहीं होता.. हौसलों से उड़ान होती है", पंक्तियों को चरितार्थ करती रांची की सविता कच्छप, सबसे कम उम्र की PhD छात्रा
आदिवासी समाज से नाता रखने वाले बच्चे भी अपनी मेहनत से शिखर तक पहुंच सकते हैं. सविता जैसे विद्यार्थियों द्वारा यह समय समय पर साबित किया जाता रहा है. यदि रुकावटें आती हैं तो उन्हें साहस के साथ पार कर लेती हैं, या प्रशासन का भी साथ मिल जाता है. बशर्ते वह अपने भीतर हौसले को जिंदा रखें.

JHARKHAND (RANCHI): अनेक संघर्षों के बावजूद अपने जुनून को बचाए रखा और पीएचडी के सपने के अब बेहद करीब पहुंच गई हैं - सविता कच्छप. रांची की रहने वाली 25 वर्षीय आदिवासी समाज से ताल्लुक रखती हैं सविता. जिस समाज का हिस्सा रहकर स्नातक ही पूरी कर लेना चर्चा का विषय बन जाता हो, उसमें जन्मी सविता ने पीएचडी करने के सपने को अपने भीतर जन्म दिया था.
अपने सपने को सिर्फ संजोए नहीं रखा, उसे पूरा करने के लिए सदैव प्रयासरत रहीं. कम समय तक ही पिता का साथ रहा, उनके गुजर जाने के बाद संघर्ष ने जकड़ लिया उनके साथ परिवार को भी. तंगी के इस हाल में भी जहां खाने के लिए भी कई बार सोचना पड़ जाए, वहां हौसले पस्त पड़ जाते हैं. लेकिन अपने सपने की लौ सविता ने दिलो-दिमाग में जलाए रखी.
सविता ने जिंदगी से जूझते हुए बीटेक व एमटेक की पढ़ाई पूरी कर ली है. अब पीएचडी करने जा रही हैं. इनका सेलेक्शन IIIT रांची में हो चुका है. कई आवश्यक सामग्रियों की कमी के कारण इन्हें पढ़ाई में कई बार बाधाएं महसूस होती थी. वर्तमान में सविता अपनी बड़ी मां के घर पर रहती हैं. परिवार का समर्थन हमेशा से इनके साथ रहा. आने वाले समय में रिसर्च आदि के लिए इन्हें लैपटॉप की आवश्यकता पड़ती है, जिससे उनके पीएचडी के सपने में बाधा बन रही है.
सविता ने बताया कि वो महज डेढ़ वर्ष की थी, जब उनके पिता का परिवार से साया उठ गया. जिसके बाद उन्हें कई मौके ऐसे भी झेलने पड़े, जब उन्हें अपनी भूख मिटाने के लिए होटलों की बची-खुची रोटियों पर निर्भर करना पड़ता था. उनका अपना घर भी रहने की हालत में नहीं है, टूट चुका है जिस कारण वे अपनी बड़ी मां के यहां रहती हैं.
अब सविता के जुझारू व्यक्तित्व और इनकी परेशानी से अवगत होने के बाद इन्हें सीएम हेमंत सोरेन का साथ भी मिल चुका है. सोशल मीडिया के जरिए सीएम ने मामला संज्ञान में लिया. उन्होंने ट्वीट कर रांची डीसी को निर्देश दिया कि होनहार सविता को हर संभव मदद दी जाए और उनके परिवार को सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए. उन्होंने बताया कि रिसर्च के अनुसार सविता देश में सबसे कम उम्र की आदिवासी छात्रा हैं जो पीएचडी कर रही हैं.
सविता ने कहा है कि लोगों की मानसिकता है कि आदिवासी जंगल में रहते हैं, और बहुत कम पढ़े-लिखे होते हैं. इस मानसिकता को तोड़ना चाहती हूं. वे बताती हैं कि जब लोगों को पता चलता है कि मैं आदिवासी हूं और पीएचडी कर रही हूं, तो लोगों को ताज्जुब होता है. इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है.









