"हम भारत के लोग.." - संविधान दिवस, वह पवित्र तारीख जब भारत बना गणतंत्र
भारत हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाता है, क्योंकि इसी दिन 1949 में देश की संविधान सभा ने औपचारिक रूप से संविधान को अपनाया था. यह दिवस नागरिकों को संवैधानिक मूल्यों, मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करने के लिए समर्पित है, ताकि देश के लोकतांत्रिक ढांचे की जड़ें मजबूत रहें.

Constitution Day of India: 26 नवंबर का दिन भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ता है. जहां एक ओर यह दिन मुंबई पर हुए 2008 के बर्बर आतंकी हमलों की काली याद दिलाता है, वहीं दूसरी ओर, यह भारतीय गणतंत्र की सबसे पवित्र नींव - संविधान - को समर्पित है. आज से 76 वर्ष पहले, 26 नवंबर 1949 को ही, संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया था, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया और देश पूर्ण रूप से गणतंत्र बना.
संविधान दिवस, जिसे पहले ‘राष्ट्रीय कानून दिवस’ के रूप में जाना जाता था, को साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने डॉ. बी.आर. अंबेडकर की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में, आधिकारिक तौर पर ‘संविधान दिवस’ घोषित किया.
संविधान का जन्म और लोकतंत्र का आधार
भारतीय संविधान किसी भी अन्य राष्ट्र के संविधान से कहीं अधिक है; यह एक ऐसा मार्गदर्शक दस्तावेज है जो देश की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दिशा तय करता है. इसका निर्माण एक लंबी, गहन और विचारशील प्रक्रिया का परिणाम था, जिसमें संविधान सभा के सदस्यों ने 2 साल 11 महीने और 18 दिन तक अथक परिश्रम किया. संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद और ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नेतृत्व में, यह दस्तावेज तैयार किया गया जो देश के हर नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (Justice, Liberty, Equality, Fraternity) की गारंटी देता है. संविधान की प्रस्तावना (Preamble) इसकी आत्मा है, जो "हम भारत के लोग" से शुरू होकर यह घोषणा करती है कि अंतिम शक्ति देश की जनता में निहित है.
नागरिकों को जागरूक करने का उद्देश्य
संविधान दिवस मनाने का मूल उद्देश्य देश के प्रत्येक नागरिक को उसके संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में शिक्षित करना है. यह महज छुट्टी का दिन नहीं है, बल्कि यह वह अवसर है जब शिक्षण संस्थानों, सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक मंचों पर संविधान के आदर्शों पर चर्चा की जाती है. इस दिन, नागरिक प्रस्तावना का सामूहिक पाठ करते हैं, ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई जा सके. यह दिन हमें याद दिलाता है कि संविधान की रक्षा करना केवल सरकारों का ही नहीं, बल्कि हर नागरिक का पवित्र कर्तव्य है, क्योंकि यह राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने का सबसे सशक्त माध्यम है.
संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित रखने की चुनौती
आज के दौर में, जब देश में विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मतभेद उभरते हैं, संविधान दिवस हमें समावेशिता और सहिष्णुता के मूल्यों पर लौटने का आह्वान करता है. यह राष्ट्र को याद दिलाता है कि भारत एक बहुलतावादी देश है, जहां हर धर्म, जाति और लिंग के लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि संवैधानिक नैतिकता हर निर्णय और कार्रवाई का आधार बनी रहे.









