कुर्मी आंदोलन केवल राजनीति प्रेरित, आदिवासियों को देखा जाता है हीनता की नजर से : गणेश गागराई
आदिवासी जनआक्रोश महारैली का आयोजन सरायकेला मुख्यालय में किया गया. लोग छह किलोमीटर तक नारेबाजी करते हुए उपायुक्त कार्यालय पहुंचे. आदिवासी समाज के जिलाध्यक्ष गणेश गागराई ने कहा कि कुड़मी समुदाय कभी आदिवासी समाज में शामिल था ही नहीं, यह आंदोलन केवल राजनीति से प्रेरित है.

Naxatra News
सरायकेला, झारखंड : आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की अगुवाई में विशाल जनआक्रोश महारैली का आयोजन सरायकेला मुख्यालय में किया गया. सैकड़ों की संख्या में आदिवासियों ने इस रैली में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की. सरायकेला स्थित बिरसा मुंडा स्टेडियम में लोगों का जमावड़ा लगा. फिर एक साथ कतारबद्ध होकर पैदल छह किलोमीटर तक नारेबाजी करते हुए उपायुक्त कार्यालय पहुंचे. महारैली के दौरान विरोध प्रदर्शन करने के बाद राष्ट्रपति के नाम एक मांग पत्र उपायुक्त नीतिश कुमार सिंह को सौंपा गया.

कुड़मी अनुसूचित जनजाति घोषित करने के मानकों को पूरा नहीं करती - गणेश गागराई
आदिवासी समाज के जिलाध्यक्ष गणेश गागराई ने कहा कि कुड़मी समुदाय कभी आदिवासी समाज में शामिल था ही नहीं. कहा कि जस्टिस बी एन लुकर समिति द्वारा बनाए गए अनुसूचित जनजाति घोषित करने के लिए 5 मानकों को यह पूरी नहीं करती है. इनका आदिवासी समाज की पारंपरिक रीति रिवाज, पूजा पद्धति, धर्म संस्कृति, समाजिक क्रियाकलाप एवं व्यवहार में कोसों दूर-दूर तक कोई मेल नहीं खाता.
उन्होंने कहा कि कुड़मियों का गोत्र आर्यों की तरह ऋषि मुनियों से जुड़ा हुआ है. वे मंदिरों में हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं, अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक का क्रियाकलाप ब्राह्मण पंडित द्वारा संपन्न कराते हैं जो हिंदू सनातन धर्म परंपरा के काफी करीब है. कुरमाली भाषा भी आर्य भाषा के अंतर्गत आती है.
कुर्मी, महतो समुदाय द्वारा पेसा कानून 1996 का पूरजोर विरोध किया गया तथा ओबीसी आरक्षण के पक्षधर हैं. कहा कि वे आदिवासियों को हीनता की नजर से देखते है. कुर्मी-महतो का आदिवासी अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल होने के आंदोलन को राजनीतिक प्रेरित बताया.
आरोप लगाते हुए कहा कि इनका मूल मकसद आदिवासियों के जल जंगल जमीन को कब्जा करना, संवैधानिक अधिकार के तहत प्राप्त शैक्षणिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं अन्य क्षेत्रों में आरक्षण को लूटने का नापाक षड्यंत्र है.









