सौ साल की उम्र में सिर्फ किताबों से करते बात, बिना चश्मे के पढ़ जाते कई डिक्शनरियां
आज के कथित आधुनिक दौर में जहां एक तरफ स्मार्टफोन ने सबको अपने चंगुल में ले लिया है बिना स्मार्टफोन के कोई भी 1 मिनट भी नहीं रह पाता वहीं दूसरी तरफ बिहार के एक 100 वर्षीय बुजुर्ग ने सभी स्मार्टफोन को पीछे छोड़ दिया है. घर वाले बताते हैं कि वे दिन रात सिर्फ किताबों से बात करते हैं अभी तक सैकड़ो की संख्या में किताबें पढ़ चुके हैं वह भी बिना चश्मे के.

BIHAR (प. चंपारण): उम्र के शतकवीर हरिहर चौधरी बिना चश्मा पहने प्रतिदिन हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा का अध्ययन करते हैं. हरिहर चौधरी ने उस रेखा को भी तोड़ा है जो उर्दू को किसी ख़ास समुदाय से जोड़ने की कोशिश करते हैं लेकीन उनकी मेहनत और कसरत ये बताने के लिए काफी है कि शब्द और भाषा किसी एक के नहीं होते लिहाजा पंचायत की मुखिया सकीना खातून भी हरिहर चौधरी की कायल हैं तो परिजन और स्थानीय ग्रामीण इन्हें मिसाल मानते हैं.

बताया जा रहा है की सौ साल के करीब ये बुजुर्ग दशवी पास हैं जिनके अपने घर के दरवाजे पर एक बक्शे में सजी छोटी-सी लाइब्रेरी किसी को भी चौंका देती है. ख़ास बात यह है की इस लाइब्रेरी में विभिन्न विषयों की किताबें और कई भाषाओं की डिक्शनरी रखी हुई हैं, जिनका वे नियमित रूप से रिवीजन करते हैं. इन्होंने औपचारिक बुनियादी शिक्षा अधिक नहीं पाई है मैट्रिक तक पढ़ाई किया है, इसके बावजूद आत्मअध्ययन और निरंतर अभ्यास से उन्होंने खुद को एक मिसाल के रूप में स्थापित किया है.
हरिहर चौधरी इलाके के बच्चों और युवाओं को शिक्षा से जोड़ने के लिए लगातार प्रयासरत रहते हैं. जो बच्चे और युवा पढ़ाई से दूरी बना रहे हैं, या किसी नशे की लत में चले जाते हैं उन्हें वें अपने अनुभवों के आधार पर सरल टिप्स देते हैं और यह समझाते हैं कि शिक्षा किसी उम्र औऱ सीमा की मोहताज नहीं होती है.

इनके मुताबिक सीखने की इच्छा ही सबसे बड़ी पूंजी है. वहीं पंचायत की मुखिया सकीना खातून भी हरिहर चौधरी की सोच और जज्बे की कायल हैं. उनका कहना है कि चौथी पीढ़ी के बीच भी हरिहर चौधरी शिक्षा की अलख जगा रहे हैं और समाज को सही दिशा दिखा रहे हैं. घर-परिवार से लेकर पूरे गांव में वे लोगों को पढ़ने और सीखने के लिए प्रेरित करते हैं. तभी तो इस रास्ते से सेमरा और बगहा आने जाने वाले रुककर हरिहर चौधरी का दीदार करते हैं. लिहाजा आज हरिहर चौधरी न केवल गोईती गांव, बल्कि बगहा के साथ ज़िला में इस बात का प्रतीक बन गये हैं कि अगर मन में दृढ़ संकल्प हो, तो उम्र और परिस्थितियां भी ज्ञान की राह में बाधा नहीं बन सकतीं हैं.
बता दें कि हरिहर चौधरी अपनें जीवन में अब तक सभी चुनावों में वोट देते आये हैं और शरीर में उम्र के कारण आईं अर्द्ध दिव्यांगता के बावजूद वृद्धा पेंशन का फॉर्म भरना और अप्लाई करना इन्होंने मुनासिब नहीं समझा क्योंकि उसके लिये सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटने होंगे लिहाजा छोटी सी किराना दुकान चलाकर परिवार का भरण पोषण करते हैं जिसमें उनकी चार पीढ़ियां एक साथ कदमताल होकर एक दूसरे की मदद करतीं हैं जो खुद में पारिवारिक एकता और एकजुटता की मिसाल है.
रिपोर्ट: संदीप चित्रांश, बगहा









