झारखंड विधानसभा में बालू संकट पर हंगामा: पांकी विधायक और मंत्री के बीच तीखी नोकझोंक
झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन बालू की किल्लत, अवैध खनन और महंगे दामों को लेकर तीखी बहस देखने को मिली. पांकी विधायक कुशवाहा शशि भूषण मेहता ने बालू की बढ़ी कीमतों और व्यवस्था पर सवाल उठाए, जबकि मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने सरकार को नुकसान न होने का दावा किया.

JHARKHAND (RANCHI): झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन बालू की किल्लत और अवैध खनन को लेकर सदन में जबरदस्त हंगामा हुआ. पांकी विधायक कुशवाहा शशि भूषण मेहता ने मुद्दा उठाते हुए कहा कि राज्य में बालू की उपलब्धता बेहद सीमित हो गई है और आम जनता को अत्यधिक कीमत चुकानी पड़ रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि जेएसएमबीसी द्वारा एमडीओ को कम दर पर चयनित करने से सरकार को भारी राजस्व नुकसान हो रहा है.
मेहता ने कटाक्ष करते हुए कहा कि अब बालू उपलब्ध कराने का काम थाने को दे दिया गया है, जिससे थानेदारों का असल दायित्व यानी कानून-व्यवस्था पीछे छूट गया है. उन्होंने दावा किया कि बिचौलियों का नेटवर्क सक्रिय है और इसके कारण 300 रुपये में मिलने वाला एक ट्रैक्टर बालू अब 7,000 रुपये में बिक रहा है. इससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है और निर्माण कार्य ठप पड़ने की कगार पर हैं.
पेयजल मंत्री का पलटवार: “राज्य को नुकसान नहीं, फायदा हुआ है”
पांकी विधायक के आरोपों का जवाब देते हुए खनन मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने कहा कि एमडीओ का चयन कम दर पर होने से राज्य को नुकसान नहीं, बल्कि फायदा हुआ है, क्योंकि सरकार को एमडीओ को भुगतान करना होता है. मंत्री ने कहा कि अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है और 374 घाटों पर 100 सीएफटी बालू 100 रुपये में उपलब्ध कराई जा रही है.
यह दावा सुनते ही विपक्ष भड़क उठा और सदन में शोर-शराबा होने लगा. मेहता ने कहा कि जमीनी स्तर पर मंत्री की बातें पूरी तरह गलत साबित होती हैं.
हटिया विधायक का हस्तक्षेप: “मंत्री जनता को गुमराह कर रहे हैं”
बहस के बीच हटिया विधायक नवीन जायसवाल भी चर्चा में कूद पड़े. उन्होंने मंत्री के दावों को चुनौती देते हुए कहा कि झारखंड के किसी भी जिले या गांव में 100 रुपये प्रति सीएफटी बालू उपलब्ध नहीं है. उन्होंने इसे “जमीनी हकीकत से दूर” बताते हुए कहा कि जनता को राहत नहीं, बल्कि परेशानियां मिल रही हैं.
जायसवाल ने 2025 के लिए लागू नई बालू घाट नीलामी नीति पर भी सवाल उठाए. उनके मुताबिक, नीलामी प्रक्रिया ऐसी बनाई गई है कि स्थानीय लोग इसमें भाग ही नहीं ले सकते. सिर्फ बाहरी ठेकेदारों को लाभ मिलने वाला वातावरण तैयार किया गया है.
सदन में तीखी नोकझोंक, समाधान पर सवाल बरकरार
पूरे विवाद के दौरान पांकी विधायक, हटिया विधायक और मंत्री के बीच कई बार तीखी बहस हुई. विपक्ष ने सरकार पर पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया, वहीं मंत्री अपने दावों पर अड़े रहे.
हालांकि लंबी चर्चा के बावजूद यह प्रश्न अभी भी अनसुलझा है कि आखिर झारखंड की जनता को सस्ती बालू कब मिलेगी? सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है, जिससे यह मुद्दा आने वाले दिनों में और राजनीतिक गर्मी ला सकता है.









