हेमंत दादा जरा गिरिडीह पर दें ध्यान ! डिलीवरी के लिए महिलाओं को खाट पर ले जाया जा रहा अस्पताल
मामला गिरिडीह के देवरी प्रखंड से शनिवार को सामने आया. जहां देवरी के जेवड़ा गांव निवासी गणेश सोरेन की पत्नी तालको मरांडी को शनिवार की सुबह जब तेज प्रसव पीड़ा उठा. तो तालको मरांडी के पति गणेश सोरेन कुछ सुझा नहीं, कि वो क्या करें, और क्या ना करें.

Naxatra News Hindi
Ranchi Desk:हेमंत सरकार में लगता है गर्भवती को डिलीवरी के लिए ले जाना नियति बन चुका है. सरकार जहां पहले मंईयां सम्मान योजना के लाभुकों के संख्या में कटौती कर सरकारी फंड को बचाने के प्रयास में है. वहीं एक साल के भीतर अगर कहा जाए कि खटिया पर गर्भवती महिला को ले जाने का पांचवां तस्वीर ने गिरिडीह को हिला दिया है. तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा.
बता दें यह पूरा मामला गिरिडीह के देवरी प्रखंड से शनिवार को सामने आया. जहां देवरी के जेवड़ा गांव निवासी गणेश सोरेन की पत्नी तालको मरांडी को शनिवार की सुबह जब तेज प्रसव पीड़ा उठा. तो तालको मरांडी के पति गणेश सोरेन कुछ सुझा नहीं, कि वो क्या करें, और क्या ना करें. क्योंकि जेवड़ा गांव का भी वहीं कहानी, कि सड़क थी नहीं कि एम्बुलेंस घर तक जा सकें. एम्बुलेंस तो दूर, बाइक तक जाने का सही से रास्ता नहीं. वहीं दूसरी तरफ पति गणेश सोरेन समेत परिजनों को चिंता इस बात को लेकर कि कहीं हालात के कारण तालको का डिलविरी बीच रास्ते में ना हो जाए, और जच्चा बच्चा को नुकसान ना हो.
लिहाजा, घर पर पड़ा खाट उठाया, उस पर चादर डाला. और खटिया पर तालको मरांडी को लिटाकर चल दिए. इस दौरान घर कि महिलाओं के साथ पति खुद पड़ोस की कई महिलाएं खटिया को कंधे पर लेकर तिसरी के स्वास्थ्य केन्द्र ले गई. जबकि तालको का ससुराल देवरी था, लेकिन देवरी स्वास्थ्य केन्द्र 32 किलोमीटर दूर था, लिहाजा, जेवड़ा गांव कि मुखिया के सुझाव पर उसे घर के करीब तीन किलोमीटर दूर तिसरी स्वास्थ्य केन्द्र ले जाया गया. लेकिन इस तीन किलोमीटर के सफर के दौरान नदी पार करने के क्रम गांव की आदिवासी महिलाओं और पंचायत जनप्रतिनिधियों ने जमकर हेमंत सरकार और जिला प्रशासन को संथालीं भाषा मे कोसा और कहा कि राज्य में आदिवासी सरकार सिर्फ नाम का है. एक सड़क तक नहीं बना.
बताते चलें कि इसी जेवड़ा गांव में दस दिन पहले ही ये नजारा देखने को मिला था, जब इसी तरह से सलगी सोरेन को खाट पर स्वास्थ्य केन्द्र डिलीवरी के लिए ले जाया गया था. और अब दस दिन बाद वहीं दर्दनाक मंजर देखने को मिला. वैसे नगर विकास मंत्री के जिले में यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले तिसरी में आदिवासी महिला को ले जाया गया, उसके बाद पीरटांड. और अब दस दिन के अंतराल मे दो अलग-अलग मामले.









