नस्लभेद का शिकार त्रिपुरा का 'एंजेल', शराबियों ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया, जिंदगी ने छोड़ दिया उसका साथ
त्रिपुरा भारत का अभिन्न अंग है. लेकिन इसी राज्य का एंजेल अपने भाई माइकल के साथ उत्तराखंड पढ़ने आया था. जहां कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने उनपर नस्लभेदी टिप्पणियां की और बेरहमी से पीट-पीटकर घायल कर दिया. बाद में जाकर उनकी मौत हो गई. लेकिन यह वाकिया कई सारे सवाल खड़े करता है.

UTTARAKHAND: उत्तराखंड के देहरादून में पढ़ाई के लिए रह रहे त्रिपुरा के युवक को स्थानीय लोगों ने इतनी बेरहमी से मारा कि उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया. मामला नस्लभेद से जुड़ा हुआ है. दरअसल एंजेल चकमा (24 साल) अपने छोटे भाई माइकल चकमा के साथ देहरादून में रहते थे. दुकान से कुछ खरीदने वो अपने भाई के साथ गए हुए थे, तभी वहां कुछ नशे में धुत्त युवकों ने आपत्तिजनक नस्लभेदी टिप्पणियां करनी शुरु कर दी. मामला इतना बढ़ गया कि लोगों ने दोनों भाइयों पर हथियारों से वार करना शुरु कर दिया. घायल अवस्था में एंजेल को अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां उसने 16 दिनों तक जिंदगी से जंग लड़ने के बाद दुनिया को अलविदा कह दिया.

जातिसूचक टिप्पणियां करने लगे शराबी
एंजेल के छोटे भाई माइकल ने बताया कि वहां वे लोग उन्हें 'चिकना', 'चिंकी', 'चाइनीज़' कहने के साथ-साथ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे. उन्होंने शुरुआत में इन बातों को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब वह मोटरसाइकिल पर बैठे, तो युवकों ने उनके बिल्कुल सामने आकर गालियां भी देनी शुरू कर दीं.

युवकों का समूह देने लगा गालियां
दोनों ने जब उनसे गाली देने का कारण पूछा तो वे इनपर हमला करने लगे. माइकल के साथ जब वे मारपीट कर रहे थे तो उनके भाई एंजेल उन्हें बचाने के लिए बीच में आए तो वे उनके साथ भी मारपीट करने लगे. माइकल ने बताया कि उनके सिर पर लोहे के कड़े से वार किया गया था, जिसके कारण वे बेहोश हो गए थे. जब उन्हें थोड़ा होश आया तो उन्होंने देखा कि एंजेल के साथ बेरहमी से मारपीट कर वो जा चुके थे.
खून से लथपथ एंजेल को कराया अस्पताल में भर्ती
माइकल के मुताबिक जब उनको होश आया तो अपने भाई की हालत देख वे घबरा गए. एंजेल पूरे खून से लथपथ थे, उनके भी सिर पर वार किया गया था, साथ ही उनके पीठ में भी चाकू से वार किया गया था. किसी तरह एंजेल को एंबुलेंस में लेकर पास के अस्पताल पहुंचे. जहां 9 दिसंबर से लेकर 16 दिन तक एंजेल का अस्पताल में इलाज चला लेकिन उनकी जान न बच सकी.
28 दिसंबर को हुआ अंतिम संस्कार
एंजल का अंतिम संस्कार 28 दिसंबर को उनके पैतृक गांव मचमरा में किया गया. यह मामला महज एक युवक की मॉब लिंचिंग का नहीं है, बल्कि देश के एक हिस्से पर नस्लवादी हमला करने का है. उक्त मामले में पुलिस फरार हत्यारों की तलाश कर रही है.
नस्लभेद, जातिवाद आखिर कब तक?
सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर कब तक इस स्थिति में सुधार होगा? देश के एक अभिन्न हिस्से से कब तक देश के ही लोग परायों की तरह बरताव करते रहेंगे? नस्लभेद के शिकार एंजेल का भी कोई सपना होगा, जिसे पूरा करने की सोच से उन्होंने अपने राज्य से इतने दूर आकर रहने और पढ़ने का फैसला किया था. मन में उनके उम्मीद रही होगी कि जहां वे रह रहें हैं वहां उन्हें ऐसी कोई दिक्कत न होगी. लेकिन आज वे कुछ अपराधियों का अकारण ही शिकार हो गए.
माइकल कहते हैं "किसी भारतीय को 'चाइनीज़' कहना अपने आप में विवादास्पद है. हम भी भारतीय हैं और अपने देश से उतना ही प्यार करते हैं."
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